काश....
की वो समझ पातें.
मैं तो उन्हें एक नजर देखने,
बाँहों में लेकर माथे को चूमने के लिए बस,
खुद को बनावटी बनाकर,
किस कदर 'बहुरुपिया' बने फिर रहा हूँ.
काश,
की वो समझ पातें,
दुयाएँ तो मैं भी मांगता हूँ उनके लिए,
जो मुझे बताने नहीं आता,
इस कदर बसतें हैं वो मुझमे,
जो मुझे जताने नहीं आता.
काश,
की वो समझ पातें
जिंदगी जीना सिख लेने का जो दंभ है मेरा,
यह तो बस 'अनुसरण' है उनका,
की जिसके लिए कभी वो कोई,
ऐतराज जता पाते.
काश,
की हालात और परिवेश देखकर,
अपने मिजाज बदल लेने के बजाय,
मुझे लेकर भी एक 'सोच' बना पाते.
काश, ...........................
--नारो
१२-०६-11
खूबसूरती से लिखे हैं मन के भाव ..काश ऐसा हो जाता ..
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 14 - 06 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
साप्ताहिक काव्य मंच- ५० ..चर्चामंच
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें !
सुन्देर... अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंवह ... काश ये होता ... काश वो होता ... बहुत खूब बयान किया है अपने जज्बातों को ...
जवाब देंहटाएंसंगीता स्वरुप जी, मिसेज शरद सिंह जी, महेश्वरी कानेरी जी, और दिगंबर नसवा जी....आप सभी को मेरा धन्यबाद !
जवाब देंहटाएंsorry sir,,, mai aapko samajh na paai.... kash ki aapke shabdon ke bjay apke man ko samajh pati..
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