शुक्रवार, 18 मार्च 2011

आज का मीडियावाद

कुछ दिन पहले फेसबुक पर राहुल (working with Aaj-Tak, TV Today Network, as.......don't know the designation) से "भारतीय मीडिया" के ऊपर चर्चा शुरू हुआ जो अगले तीन दिन में लगभग एक लड़ाई का रूप ले लिया. 'आज तक' वालों में एक खास बात यह है की जब ये बोलते हैं तो "देश का सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल" का जोश लबालब होता है. खैर एक 'विडियो एडिटर' और  "देश का सर्वश्रेष्ठ न्यूज़ चैनल" के पत्रकार के बिच की शाब्दिक लड़ाई बेनतीजा रही.
सब कुछ फेसबुक के comments  में नहीं कह सका इसलिए लिख रहा हूँ.

मैं यहाँ आरुषी वाले घटना को लेकर दो बातें लिखता हूँ.- १. आरुषी और उसके माता-पिता यदि बिहार के किसी दूरदराज जिले के रहने वाले होते तो क्या यह केस इस तरह से हाइप होता? लेकिन चाहे भी हो मीडिया के प्रयास ने उत्तरप्रदेश के एक चौकीदार से लेकर देश के सर्वोच्च जाँच एजेंसी तक को सोचने पर मजबूर किया है.
 अब मैं सिर्फ पंक्तियों के क्रमों को पलट देता हूँ. -२. मीडिया के प्रयास ने उत्तरप्रदेश के एक चौकीदार से लेकर सर्वोच्च जाँच एजेंसी तक को सोचने पर मजबूर कर दिया है लेकिन क्या यह तब भी होता यदि आरुषी और उसके माता-पिता बिहार के किसी दूरदराज जिले के रहने वाले होते???

आप मीडिया वाले किस कथन के साथ हैं? शायद व्यावहारिक तौर पर पहली कथन के साथ. आप वास्तव में खुद को व्यावहारिक और भारतीय मीडिया को व्यावसायिक बनाने में जुट गयें.  इस कोशिश में आपने इतनी तेज दौड़ लगाई की आप व्यवसायिक ही नहीं 'अति-व्यवसायिक' हो गयें. और अब जो नए generation का खेप आ रहा है वो 'पत्रकार' कम और 'मीडियाकर्मी' ज्यादा है. 'खबर' का मतलब समझ में आये या ना आये, TAM का आंकड़ा कंठस्थ याद हो जाता है, और ये घुट्टी उन्हें उन्ही संस्थानों में ही पिलाई जाती है जहाँ से वो निकलते हैं.

'अति-व्यवसायिक' पर आता हूँ.  भारतीय मीडिया बहुत जल्दी में है, और आप मीडिया वाले हड़बड़ी में. आप हड़बड़ी में इसलिए हैं क्यूंकि आप 'डेड-लाइन' में जीते हैं. पहले आप कार्पोरेट के लिए काम करते थे अब खुद 'कार्पोरेट' हो गए हैं. आपको खबर से ज्यादा ध्यान TAM के आंकड़ों पर है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया में क्रांति लाने वाले रजत शर्मा भी अपनी अदालत में राखी सावंत को बुलाकर हँस-ठीठोली करते रहते हैं. इंडिया टीवी के तो जैसे पर निकल आये हैं. वह आजकल 'बिग टॉस' नाम से वर्ल्ड कप पर सबसे बड़ा रियलिटी शो प्रसारित कर रहा है लेकिन उससे कोई पूछनेवाला नहीं है कि न्यूज चैनल पर रियलिटी शो प्रसारित करने की अनुमति किसने दी है सरकार का हाथ भी आप मीडिया वालों के कंधे पर है. प्रत्यक्ष रूप से या परोक्ष रूप से, क्या फर्क पड़ता है.  सरकारी आलम तो यह है की इस देश में सरकारी मंचों से टेलीविजन के किसी भी कार्यक्रम पर नकेल तब तक नहीं कसी जाती है जब तक कि कोई हादसा न हो जाए या फिर जनहित में किसी की ओर से मुकदमा न दायर कर दिए जाएं। इस हिसाब से इंडिया टीवी के उपर किसी तरह की कार्यवाई हो इसके लिए हमें किसी बड़े हादसे का इंतजार करना होगा। इस कार्यक्रम में प्रतियोगियों को 'बिग-बॉस' के तर्ज पर एक घर में बंद कर के रखा गया है. उन्हें इस घर में एक डरावनी रास्ते से होकर गुजरना पड़ा. (हालाँकि उस  डरावनी रास्ते का फूटेज गाजिअबाद के शिप्रा माल स्थित 'भूत-बंगला' से लिया गया है और एडिटिंग टेबल पर उसे उस घर का रास्ता बना दिया गया.) आजकल उस बंद घर में प्रतियोगिओं के बिच झगड़ा होता है जिसे इंडिया टीवी ब्रेकिंग न्यूज़ के पट्टी पर चलाता है, जैसे-"राखी-वीणा आज सहवाग के लिए लड़ी". अन्दर बंद प्रतियोगी अपने पसंद की खिलाड़ी पर सट्ठा लगाते हैं, और बाहर दर्शक sms करके उन प्रतिओगियों पर. ऐसा लगता है जैसे इस शो का प्रोडूसर पहले UTV Bindass में काम करता था.

राहुल ने एक कमेन्ट में लिखा की ये इंडिया है. यहाँ खबर से ज्यादा लोग मसाला पसंद करते हैं.  चैनल हेड से लेकर इन्टर्न करने वाले तक के जुबान पे यही डायलौग चिपका हुआ है. TAM के रिपोर्ट आते हीं आज-तक और इंडिया-टीवी वाले उछल पड़ते हैं. 5 टॉप के कार्यक्रमों में से ४ उन्ही के होते हैं. ये TRP नाम की चीज कितना सच है और कितना धोखा ये सभी न्यूज़ चैनलों के हेड अच्छी तरह समझते और जानते है, ये अलग बात है की वो उसे पकड़ कर झुन्झुन्ना की तरह बजाने पर मजबूर हैं. TRP की इस नौटंकी पर थोड़ा रिसर्च मैंने भी किया. वर्णन करता हूँ.-

भारत में लगभग 50 करोड़ टीवी दर्शक हैं, जिनके आकलन के लिए आपके TAM के पास सिर्फ 8000 पीपुल मीटर है. आपके इसी TAM के मुताबिक, देश में कुल २२.३ करोड़ घर हैं जिनमें से कुल १३.८ करोड़ घरों में टी.वी है. इनमें से १०.३ करोड़ टी.वी घरों में केबल और सेटेलाईट उपलब्ध है जबकि दो करोड़ टी.वी घरों में डिजिटल टी.वी उपलब्ध है.
इसी तरह, देश में कुल टी.वी घरों में ६.४ करोड़ शहरी इलाकों में और सात करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों हैं. लेकिन इससे अधिक हैरानी की बात क्या होगी कि जिस टी.वी रेटिंग के आधार पर चैनलों और उनके कार्यक्रमों की लोकप्रियता का आकलन किया जाता है, उसके ८००० पीपुल मीटरों में एक भी मीटर ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है. यही नहीं, पूरे जम्मू-कश्मीर, असम को छोड़कर पूरे उत्तर पूर्व में कोई पीपुल मीटर नहीं है. इसका अर्थ यह हुआ कि इन क्षेत्रों के दर्शकों की पसंद कोई मायने नहीं रखती है. लेकिन उससे भी अधिक चौंकानेवाली बात यह है कि अधिकांश पीपुल मीटर देश के आठ बड़े महानगरों तक सीमित हैं जहां कुल २६९० मीटर लगे हुए हैं. इस तरह, सिर्फ आठ महानगरों में कुल पीपुल मीटर्स के ३३.६ प्रतिशत लगे हुए हैं. इसमें भी दिल्ली और मुंबई में कुल टी.वी मीटर्स के १३.५ फीसदी मीटर्स लगे हुए हैं जबकि इन दोनों शहरों में देश की सिर्फ दो प्रतिशत आबादी रहती है. इसी तरह, देश के पश्चिमी हिस्सों खासकर गुजरात (अहमदाबाद सहित) और महाराष्ट्र (मुंबई छोड़कर) में कुल पीपुल मीटर्स के १९ फीसदी मीटर्स लगे हुए हैं.
टी.वी रेटिंग की मौजूदा व्यवस्था में जहां अकेले पुणे में १८० पीपुल मीटर्स लगे हुए हैं, वहीँ पूरे बिहार में सिर्फ १५० मीटर्स लगे हैं. इसी तरह, दिल्ली में कुल ५४० पीपुल मीटर्स लगे हैं, वहीँ पूरे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल ४५० मीटर्स लगे हैं.
और भी ज्यादा विस्तृत आंकड़ो के लिए गूगल पर सर्च कर लीजिये.

  एक बार मीडिया वाला न बनकर आप विश्लेषण करेगें तो पता चल जायेगा की आप जिस आधार पर खुद को नंबर-१ बनकर ढोल बजाते हैं उसे मुट्ठी भर लोंगों ने नंबर-१ बनाया है. हाँ, यही मुट्ठी भर लोग हैं जो सर्फ़, साबुन और fair & Lovely ज्यादा खरीदते हैं. 'सहारा समय' जैसा न्यूज़ चैनल उत्तरप्रदेश/उत्तराखंड में प्रथम स्थान हासिल करके भी ओवरऑल TRP रेटिंग में ५-६ स्थान पर हीं रहता है क्यूंकि उसे देखने वाले वो हैं जिनके आस-पास पीपुल मीटर बहुत कम लगा हुआ है.
   इसलिए आप यह कह सकते हैं हमारे फलाने शो को खूब रेटिंग मिली, फलाने टाइप के शो ने अच्छा बिजनेस किया लेकिन यह नहीं कह सकते की ये इंडिया है यहाँ खबर से ज्यादा लोग मसाला पसंद करते हैं.
आप तो कुछ भी बोलेंगे हीं. भारत के 'महामहिम मीडल क्लास लोग' आपके साथ जो हैं. यही 'महामहिम मीडल क्लास लोग' तो आज कल 'बाजार' बना हुआ है. इनको कुछ भी बेच लो खरीद लेंगे. गली के धुल से लेकर इमोशन तक, सब कुछ. आप मीडिया वाले पीछे क्यूँ रहे. बात पेट का है. अगर जिन्दा रहना है तो न्यूज़ रूम में भूत बुलाओ, फिर भूत भगाने के लिए ' अग्रिम पेड बाबा'.

मेरे एक विडियो एडिटर दोस्त को एक न्यूज़ चैनल के इंटरव्यू में पूछा गया था की युट्यूब से विडियो डाउनलोड करने आता है की नहीं? मैंने १६ दिन सुदर्शन न्यूज़ में ट्रेनी एडिटर के तौर पर काम किया है. वहाँ गुजरात के फर्जी मुठभेड़ वाले कांड पर पॅकेज बनाते समय मुझसे कहा गया की यूट्यूब से सिक्ख विरोधी दंगों के फूटेज निकाल कर उस पॅकेज में लगाओ. कहानी को horrible बनाने के लिए और किसी खबर को 'किसी खास पार्टी' के लिए इस्तेमाल करने में मीडिया पारंगत हो गया है. मीडिया के इस बदलते छबि के खिलाफ जो लोग लिखते हैं या बोलते हैं उन्हें चैनलों के 'TRP मशीन' टाइप के मीडियाकर्मी सलाह देते हैं की ऐसे इमोशनल मत होइए जबकि टॉप ५ में स्थान हासिल करने वाले कार्यक्रमों में से २ या ३ कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिससे दर्शकों को इमोशनली टीवी के आगे बैठने पर मजबूर किया जाता है.

एक और बचकाना सा डायलौग है आप मीडिया वालों का. "रिमोट आपके हाथ में है. जो चाहे देखिये. कोई कार्यक्रम पसंद नहीं है तो मत देखिये".  आप बता सकते हैं की पहले इंडिया टीवी ने भूत-प्रेत, टोना-टोटका दिखाना शुरू किया या दर्शकों ने देखना??? या दर्शकों का किसी association ने इसकी डिमांड की थी? 'पसंद नहीं है तो मत देखिये' वाला डायलौग से सिर्फ उल्लू सीधा किया जा सकता है. यह 'द ग्रेट मिडल क्लास' की १ अरब २० करोड़ का भारत है. टीवी, मोबाइल लोंगो के रग-रग में घूंसा हुआ है. क्या दिखाना है, इन लोंगो की मानसिकता को किस ओर लेकर जाना है, ये कही ना कही टीवी कार्यक्रमों बनाने वालों के ऊपर भी निर्भर है. ये आपकी खुसकिस्मती है की इस १ अरब २० करोड़ लोंगो में से वे लोग भी हैं जो 'कमिश्नर के कुत्ते खोने' , 'शमशान पर चमत्कार' जैसे कार्यक्रमों को अपने रिमोट से हटा नहीं पाते. यहीं उनकी मानसिकता है जिसे आप धीरे-धीरे upgrade कर रहे हैं और बाद में TRP  में नंबर-१ का डंका बजा लेते हैं. TRP के आंकड़ो के अलावा बहुत से और भी आंकड़े और तथ्य हैं.  नंबर-१ होने को सेलेब्रेट करते रहिये लेकिन साथ-साथ उन तथ्यों को भी समझिये. यह सलाह नहीं है . सलाह देने के लिए बहुत छोटा हूँ.

गलत-सलत हिंदी के लिए माफ़ी चाहता हूँ. साधारण सा विडियो एडिटर हूँ, पत्रकार नहीं. राहुल जैसे दोस्त कभी-कभी मजाक में छेड़ देते हैं तब मेरे अन्दर भी एक पत्रकार का भूत घूँस जाता है. वैसे तो अपने देश की आधी आबादी पैदाइशी पत्रकार है और बाकि के आधी नेता.

एक बात और, अपने देश में 'पत्रकार' की महानता को दिखाते हुए एक और कॉलम लिखा है. शीर्षक है-"चले लल्लन पत्रकार बनने" . शीर्षक पर मत जाइएगा. मैंने आप पत्रकार लोंगो का दिल खोलकर तारीफ किया है. वो भी बिलकुल फ्री. जल्दी ही टाइप करके भेजूंगा.

धन्यबाद!!!!!