शनिवार, 29 मई 2010

बेटियाँ......

मेरी एक दोस्त ने अपने ब्लॉग में लडकियों के अभिशप्त जीवन के ऊपर कविता और लेख लिखी है. अपने प्रगतिशील  देश में लड़कियों के ऐसे बद्दतर हालत पर मुझे भी कुछ कहने को मन करता है.
         सबसे पहले मै तेजी से तरक्की के ढिंढोरा पीटने वाले भारत के कुछ आंकडे बताता हूँ, जिसे सुनकर आप भी एक भारतीय होने पर शर्मिंदगी महसूस करेंगे.  उनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना ७००० लड़कियों की गर्भ में ही हत्या कर दी जाती है. गुजरात में तीन ऐसे गाँव है जहाँ एक भी औरत नहीं बची है. यही नहीं देश के दूरदराज के गाँव में गर्भपात कारँव वाली वैन घुमती है. ये नंगा सच उस देश के बारे में है जिसकी राष्ट्रपति एक महिला है और जहाँ की सत्ता की धुरी एक महिला नेता के इर्द-गिर्द घुमती है.
     पाकिस्तान और नाइजीरिया जैसे देश भारत से ज्यादा पिछड़े है लेकिन वहां का लिंगानुपात भी भारत से ज्यादा बेहतर है.
यह था बेटियों का पैदा होने से पहले का दर्द. लड़कियों के साथ ज्यादती यही ख़त्म नहीं होता. "अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो..." अगर यह टीस एक पढ़ी-लिखी लड़की के दिल से निकलता है तब सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है की यहाँ बेटियों को किस तरह से शोषित किया जाता है. एक भारतीय परिवार की पूरी धुरी "बेटा" के इर्द-गिर्द ही घुमती है. बेटा है तो सब कुछ है बेटा नहीं तो परिवार कैसा? बेटियों के प्रति यह परायापन समाज को एक अँधेरी सुरंग में धकेल रहा है.
           कलर्स चैनल पर आने वाली धारावाहिक "बालिका बधू" इस बेटावाद के सोच पर चोट करती है. मुझे इसका एक सीन याद आ रहा है. घर के सदस्यों को पता चलता है की बहु माँ बनने वाली है. यह जानते ही परिवार का प्रत्येक सदस्य पोता होने का उद्घोष करते हुए खुशियाँ मानाने लगता है. यह कहानी एक धारावाहिक का ही नहीं है बल्कि इस देश का एक दुखद सत्य है. बेटे की चाह में दुबे भारतीय बेटियों से इस कदर नफरत करते है की कल्पना करना भी मुमकिन नहीं है.
      अख़बार में रोज बलात्कार की खबरें पढ़कर हम उस पर दुःख व्यक्त कर लेते हैं, लेकिन उनकी भावनाओं के  साथ प्रत्येक क्षण बलात्कार होता है यह शायद ही कोई समझने की कोशिश  करता है.
 बेटियों से नफरत ऐसे हीं किया जाता रहा तो निश्चित है की इसका व्यवस्थित सामाजिक ढांचे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. जो परिवार इस संकीर्ण मानसिकता को छोड़ने को तैयार नहीं उनके लिए परिवार कानून के बन्धनों को इतना कठोर बनाने की जरुरत है की स्वपन में भी बेटियों को प्रताड़ित करने की कल्पना न कर सके.