जबकि देश अपनी आजादी की ६२ वीं वर्षगांठ मना रही हो, स्वतन्त्रा दिवस के एक दिन बाद समक्ष में अपनी पहली लेख के शीर्षक "गुलामी के एक साल और" रखना थोड़ा अजीब सा लगता है। मै कोई बड़ा लेखक होता तो यह तय था की मुझपर देशद्रोही होने का मुकदमा चल जाता। यूँ तो मीडिया बाकि के ३६४ दिन सरकार के नीतियों को पानी पी पीकर कोसता है लेकिन १५ अगस्त के दिन वह भी प्रधानमंत्री के भाषण और बंदूकों की सलामी प्रसारित करता रहता है। लेकिन मै आज के दिन आपको पुरे साल घटे घटनाक्रम का लेखा-जोखा देता हु जिससे स्पष्ट होता है की गुलामी का वायरस देश में अभी भी है... मै मानता हु की ६३ साल पहले भारत को ब्रिटिश उपनिवेश से आजादी मिल गयी थी और इसके बाद देश में फैली कुछ अन्य प्रकार के दोष जैसे बाल-विवाह, अशिक्षा, जातिवाद और कुछ हद तक गरीबी से भी भरता को किस्तों में ही सही लेकिन आजादी मिल रही है। भारत एक विश्वशक्ति बनने की ओर अग्रसर है। जाहिर सी बात है, आजादी के बाद हुई भारत की प्रगति संतोषजनक है। लेकिन बात यदि पिछले साल की कि जाए तो ऐसा लगा जैसे सरकार विषम परिश्थितियो में मजबूती से लड़ने के बजाये शार्टकट अपनाती नजर आई। मै मानता हूँभारत के नेताओं में दूरगामी दृष्टि की कमी ही वह तत्व है जिसके कारण हम ख़ुद को गुलामी के जंजीर में कसमसाते हुए महसूस करते है। बहुत ज्यादा तो नही यहाँ मै कुछ मुद्दों का जिक्र करना चाहूँगा जिसने बीते साल भारत की आजादी और संप्रभुता को सर्मशार किया है।
संसद में नोटों की गड्डी...
पूरा देश सांसत में था जब बीजेपी के तीन साँसद ने यह कहते हुए संसद में नोटों की गड्डी फहरा दी की यह पैसे कांग्रेस ने उन्हें एटॉमिक डील के पक्ष में वोट करने के लिए भिजवाई है। लोग टीवी के सामने बैठे थे सरकार गिराने और बनने के मसालेदार ड्रामा देखने और उन्हें ऊपर से मुफ्त में यह दाल में तड़का मिल गया। खैर, कांग्रेस की सरकार बची और जैसे-तैसे अटोमी डील पर हस्ताक्षर हुए। यह अलग बात है की भारत के बुद्धिजीविओं तक को नही पता की सरकार ने ऐसी कौन सी चीज गिरवी रखकर इस परमाणु अधिकार को ख़रीदा। लेकिन इस नोट कांड के बाद अमेरिका के मीडिया ने भी छापा की भारत की कांग्रेस सरकार ने इस डील के लिए सांसदों को मंहगे डर पर ख़रीदा। हम अमेरिकी मीडिया को चुप नही करा सकते। वे स्वतंत्र है किसी चीज पर कुछ पर बोलने के लिए। गुलाम तो हम है, हमारे सांसद है नोटों की गड्डी के। सत्ता के सुख के, और "नोट कांड" इसका सबसे बड़ा उदहारण है।
भारत की अमेरिका परस्ती.....
भारत करीब पिछले दस सालों से अमेरिका की सरपरस्ती करता आ रहा है। लेकिन पिछले एक साल में भारत ने कितनी मुद्दों पर कितनी बार अमेरिका की हाँ में हाँ मिलाई है, मेरे लिए यह गिनवा पाना मुश्किल है। कई बार तो अमेरिका के इशारे के बिना भी भारत ने ऐसा किया। विश्वशक्ति के गहरे मित्र बनकर इतराने के साथ-साथ भारत को यह भी सोचना चाहिए की बदले में उसने क्या खोया है। इरान-पाकिस्तान-भारत गैस पाईपलाईन खटाई में पड़ा हुआ है। अपने पड़ोसी समुदाय में जिनका हम कभी गार्जियन हुआ करते थे उनके नजरों में हम कही के नही रहे। श्रीलंका तमिलों के मुद्दे पर हमें विलेन मानता है। कुछ दिन पहले नेपाल के निवर्तमान प्रधानमंत्री प्रचंड ने आरोप लगाया की उसकी सरकार गिराने के पीछे भारत है। हमारी किरकरी चारो तरफ़ हुयी है। विश्वशक्ति का इतना ज्यादा सरपरस्ती से ऐसा नही लगता की हम उसके इशारे पर नाचने वाले बन्दर हैं।
विश्व का सबसे बड़ा फिदायीन हमला भारत पर....
देश का बच्चा-बच्चा जानता है। यह नही की किस प्रकार १० आतंकियों ने मुंबई में घंटों खुनी खेल खेला। बल्कि यह भी की वे कहाँ से आयें थे और किसके इशारे पर यह सब कुछ कर रहे थे। कम से कम एक -तिहाई देशवासी यह अपेक्षा कर रहा था की भारत सीमा पर आतंकियों के ठिकाने पर कारवाई करेगा। लेकिन ऐसा कुछ नही हुआ। इस बार तो भारत के पास एकमात्र जिन्दा पकड़े गए आतंकी कसाब के बयां और भी बहुत से पुख्ता साबुत थे। मई तो फिर भी इसके बाद भारत का पाकिस्तान पर आक्रामक दबाब बनाये रखने से संतुष्ट था। लेकिन इसी बिच अभी कुछ दिन पहले हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी मिस्त्र के शर्म-अल-सेख में जाकर देश को शर्मशार कर दिया। उन्होंने वहां पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ संयुक्त साझा का बयां दे दिया। उन्होंने लगभग यह कह दिया की वे पाकिस्तान के साथ बातचीत जारी रखेंगे । पाकिस्तान आतंकियों को पनाह देना जारी रखेंगे और हम उनके साथ बातचीत जारी रखेंगे। यह हमारी विदेश नीति का सबसे विकृत रूप है। जैसे हम पाक सरंक्षित मुट्ठी भर आतंकियों के गुलाम हों। जिनके आगे हमने शीश नवाना सिख लिया है। ठीक एक गुलाम की तरह।तो इस प्रकार मेरे लिए तो गुलामी के एक साल और। समूचे देशवासी इस दिन को हर्ष में दुबे रहते है क्यूंकि इस दिन १५ अगस्त को एक आजाद भारत का जन्म हुआ था। मै भी खुशियाँ मनाता हूँ लेकिन भारत में आजादी के जन्म के कारण से ज्यादा इस कारण की इस दिन मेरा भी जन्म हुआ था। इसमे कोई दो राय नही की मै मुझे बहुत ज्यादा ऐसा नही लगता की मै एक संपूर्ण स्वतंत्र देश का वासी हूँ क्यूंकि आजादी महसूस करने के लिए किसी भी गुलामी के तत्वों का न होना बहुत जरूरी है।
Written By- Narottam Giri
Dear Best Ambition of you,You Had Best Article
जवाब देंहटाएंit's great........
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